लेख में दिए गए तथ्य डा. सुब्रमणियन स्वामि (तत्काल राज्य सभा सांसद, पूर्व हार्वर्ड प्रोफेसर, पूर्व सदस्य- भारतीय प्लानिंग कमिशन, पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर), डेविड वुड्स (अमेरिकन एक्टिविस्ट, रिलिजन रिसर्चर), मोसेब युसुफ़ (भूतपूर्व मुस्लिम, इस्लामिक स्कॉलर, पुत्र: हमास लीडर- इस्लामिक आतंकवादी संगठन) की स्पीच एवं लेख में से लिए गए हैं।
गैर मुस्लिम काफिरों पर जिहाद की नीति
3 Stages of Armed Jihad
जिहाद ए असगर - गैर मुस्लिम काफिरों पर जिहाद
इस्लाम समूचे संसार को 3 भागों में विभाजित करता है। इन तीनों भागों में इस्लाम की नीति मुसलमान काफिरों के लिए स्पष्ट है:
दारुल अमन: जब मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक हो और बहुमत गैर मुस्लिम काफिर आबादी एकजुट हो।
दारुल हरब: जब मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक हो औेर बहुसंख्यक गैर मुस्लिम आबादी एकजुट ना हो।
दारुल इस्लाम: जब मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो।
1. दारुल अमन: जब मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक हो और बहुमत गैर मुस्लिम काफ़िर आबादी एकजुट हो (छिपा हुआ जिहाद): यहां इस्लाम निर्देशित करता है कि ऊपर से गैर मुसलमान काफिरों के मित्र बन जाओ परन्तु अंदर से उन्हें सदैव अपना शत्रु मानो। सदैव एकजुट रहो, अपनी जनसंख्या की वृद्धि करते रहो। दारुल अमन में मुसलमान शांति पूर्ण तरीके से जिहाद करते हैं। इसको छिपा हुआ जिहाद भी कहा जा सकता है। “दारुल अमन में संसार के सारे अच्छे मुस्लिम मिलते हैं जो सबके साथ मिल जुल के रहते प्रतीत होते हैं।”
उदाहरण ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में एक बार एक इस्लामिक विद्वान ने मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हुए वहां की सरकार से यह मांग रखी कि हम मुसलमान हैं और हमारे विवाह एवं तलाक आदि के नियम शरीयत के अनुसार होते हैं अथवा अलग हैं। इसलिए मुस्लिमों के लिए उनके धर्म के नियमों के अनुसार विवाह, तलाक आदि की व्यवस्था प्रदान की जानी चाहिए। उस समय ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री एक महिला थी। प्रधान मंत्री ने कहा कि जिनको शरिया चाहिए वे अपना सामान बांधें और उस देश में जाकर रहें जहां शरिया कानून लागू है। ऑस्ट्रेलिया में Uniform Civil Code सबके लिए एक समान कानून विधान ही रहेगा। अगले दिन सब मुसलमानों ने एकजुट होकर कहा कि वह मौलाना तो पागल है, हम सब ऑस्ट्रेलियन कानून से अत्यंत प्रसन्न हैं। जो मुसलमानों को ऑस्ट्रेलिया में स्वीकृत हैं वह भारत में कदापि मान्य नहीं है।
2. दारुल हरब: जब मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक हो औेर बहुसंख्यक गैर मुस्लिम आबादी एकजुट ना हो (रक्षात्मक जिहाद): यहां इस्लाम कहता है कि जो भी इस्लाम के खिलाफ बोले या उसके खिलाफ आवाज़ उठाए उसे मृत्यु दे दो। अपने इस्लामिक अधिकारों के लिए, शरिया कानून के लिए मांग करते रहो। संगठित रहो एवं अपनी जनसंख्या की वृद्धि करते रहो। “दारुल हरब में अच्छे (सामान्य जिहादी) एवं बुरे (कट्टरपंथी जिहादी) मुसलमान दोनों मिलेंगे। हरी टिड्डी रूपी बुरे मुसलमान हरी घास रूपी अच्छे मुसलमानों में छुप कर जिहाद करते हैं। बहुसंख्यक गैर मुस्लिम काफिरों को भ्रमित रखने के लिए मुस्लिमों कि छवि बनाने का कार्य घास रूपी अच्छे मुसलमान करते हैैं।” घास रूपी अच्छे मुस्लिम इस बात का प्रचार करते हैं कि सब मुसलमान बुरे नहीं होते। इसमें मुस्लिमों के द्वारा किए गए एक दो छोटे बड़े कार्यों को बड़ा चड़ा के बड़े स्तर पर प्रचारित किया जाता है। इसमें तथाकथित अच्छे मुस्लिम जो सिनेमा से जुड़े हैं वे सिनेमा के माध्यम से, जो लेखक हैं वे लेख के माध्यम से, जो समाचार से जुड़े हो वे समाचार के माध्यम से, जो जिस क्षेत्र संबंधित होता है वो उस क्षेत्र के माध्यम से मुसलमानों की छवि को सुधारने कार्य करते हैं। वे ऐसा करने में यह भी प्रस्तुत करने का भी प्रयत्न करते हैं कि मुसलमानों साथ कितना अत्याचार हो रहा है। इस प्रकार तथाकथित अच्छे मुसलमान जिहाद में अपना सहयोग प्रदान करते हैं।
इस प्रकार के जिहाद के अनेक उदाहरण हैं जैसे भारत, फ्रांस, इंग्लैंड, अधिकांश यूरोप, अमेरिका आदि। उदाहरण के लिए फ्रांस में एक समाचार पत्रिका ने 53 वर्ष के पैगम्बर मोहम्मद का चित्र उसकी 7 वर्ष की आयु की बेगम के साथ प्रसारित किया जो की सच है। ऐसा करने पर जिहादियों ने उनके कार्यालय में घुस कर 17 लोगों को मार डाला और 19 लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। पर जब एम. एफ. हुसैन नामक पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण पेंटर ने हिन्दू देवी देवताओं के अश्लील चित्र बनाकर प्रसारित किए तो सब तथाकथित अच्छे मुसलमान चुप रहकर जिहाद में योगदान कर रहे थे। तथाकथित अच्छे मुसलमान गाज़ा में मुसलमानों के इस्राएल के द्वारा मारे जाने पर समूचे विश्व में प्रदर्शन करते हैं परन्तु इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा दसियों हज़ार यज़िडी yazidi लड़कियों एवं स्त्रीयों को सेक्स गुलाम बनाने पर एकदम चुप रहकर काफिरों पे जिहाद का समर्थन करते हैं। 6 से 7 साल की बच्चियों का भी दिन में 30 से ज़्यादा बार बलात्कार किया जाता रहा। सिर्फ यही नहीं इन सेक्स ग़ुलामों का बाज़ार लगाकर $10 से $500 में बेच दिया जाता। अच्छे मुसलमान इसलिए भी चुप रहते हैं क्योंकि इस्लाम अनुसार काफ़िर महिलाओं को सेक्स ग़ुलाम बना कर रखना हलाल (पुण्य) का कार्य है और प्रत्येक काफ़िर सेक्स ग़ुलाम के बदले जन्नत में एक हूर (सुंदर कुंवारी कन्या जो सेक्स करने के बाद भी कुंवारी रहती है) अधिक प्राप्त होती है। प्रोफेट मोहम्मद की भी अनेक काफ़िर सेक्स गुलाम थी। मोहम्मद घोरी, गज़नी, बाबर, अक़बर, जहांगीर, औरगज़ेब आदि इस्लामिक आक्रांताओं की अनगिनत काफ़िर सेक्स गुलाम थी। काफ़िर सेक्स गुलाम से पैदा होने वाली संतान इस्लाम के अनुसार जिहादी होती है। विश्व की ज़्यादातर मुस्लिम आबादी इसी प्रकार के जिहाद के फलस्वरूप विकसित हुई है।
3. दारुल इस्लाम: जब मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो (आक्रामक जिहाद): यहां पर इस्लाम कहता है कि गैर मुस्लिम काफिरों को जहां भी देखो मार दो, जो कुछ भी उनका हो उसपर अतिक्रमण लो। उनकी स्त्रीयों को ग़ुलाम बना लो। उनके साथ तब तक बलात्कार करो जब तक वे इस्लाम ना कबूलें। ऐसा करना हलाल (पुण्य) है और जो भी इसे हराम (पाप) कहेगा उस पापी को मार देना अनिवार्य है। इस्लाम यह स्पष्ट बताता है कि एक मुसलमान के लिए किन औरतों साथ शारीरिक संबंध बनाना हलाल (पुण्य) है। उसमें कहा गया है कि अपनी बेगमों (wives) और काफ़िर ग़ुलाम स्त्रियों के साथ शारीरिक संबंध बनाना हलाल (पुण्य) है। उन गुलाम औरतों से पैदा होने वाले बच्चे नए जिहादी होते हैं। “दारुल इस्लाम में केवल कट्टरपंथी मुसलमान ही दिखाई पड़ते हैं, सामान्य अच्छे मुसलमान अचानक से कहीं लुप्त हो जाते हैं।” दारुल इस्लाम के अनेक उदाहरण हैं। निकटतम उदाहरण इराक़ में yazidi यज़िडी धर्म के लोगों के साथ हुआ नरसंहार एवं यज़िडी स्त्रियों को सेक्स स्लेव बनाकर उनके अमानवीय बलात्कार। 1990 कश्मीर में बहुसंख्यक मुसलमानों ने मस्जिदों से नारे लगा कर घोषणा की थी कि कश्मीर में रहना होगा तो अल्लाह हु अक़बर कहना होगा। उन्होंने अल्पसंख्यक हिन्दुओं को तीन विकल्प दिए थे। 1. मुसलमान बन जाओ 2. मारे जाओ 3. अपनी स्त्रियों को छोड़ के यहां से चले जाओ। जब बात स्त्रियों पर आयी तो कश्मीरी हिन्दुओं ने लाखों की संख्या में पलायन शुरू कर दिया। उसमें भी पुरूषों को मार दिया गया छोटी बच्चियों, लड़कियों और औरतों का सामूहिक बलात्कार करके हज़ारों हिन्दू स्त्रियों को सड़कों पर नग्न घुमाया गया। मुसलमान छात्रों ने अपनी हिन्दू अध्यापिकाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए, हिन्दू साइंटिस्ट, मीडिया कर्मी, पुलिस कर्मी, इंजिनियर, डॉक्टर, नर्स किसी पर कोई दया नहीं की गई। लाखों हिंदुओं का नर-संहार किया गया, लाखों हिन्दू बच्चियां, लड़कियाँ, महिलाएं आज भी लापता हैं। वे जीवित हैं या नहीं कोई नहीं जानता। कुछ के घरवाले आज भी उम्मीद लगाकर बैठे हैं। लगभग 100% कश्मीरी मुसलमानों की जनसंख्या ने काफ़िर हिंदुओं पर जिहाद में सहयोग किया था। तो क्या उन सबको अपराधी मानना तर्कसंगत नहीं है। 5,00,000 से ज़्यादा कश्मीरी हिन्दू आज भी अपने ही देश में शरणार्थी हैं जिनकी सुनने वाला कोई नहीं।
अभी 2017 में मयानमार में हिन्दू पुरुषों की सामूहिक कब्रें मिली। यह कब्रें तब मिली जब कुछ हिन्दू लड़कियों को रोहिंग्या मुसलमानों के कैम्प से सुरक्षाबलों द्वारा छुड़ाया गया। पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि उनके गांव पर मुसलमानों ने सामूहिक हमला किया। हिंदुओं को चुन चुन के निकाला गया। उनकी आंखों के सामने उनके परिवार के पुरुषों कि अत्यंत अमानवीय तरीके से हत्या कि गई। हिंदु औरतों को सेक्स गुलाम बनाकर उनके साथ लगातार दिन रात बलात्कार किए गए। उनमें से कुछ ने बच्चों को जन्म दिया और कुछ दोबारा गर्भवती थीं। जो ज़्यादा हतभागी थीं वे अब भी लापता हैं।
इसके अलावा दारुल इस्लाम के और बहुत से उदाहरण हैं जहां पिछले 1400 सालों में कश्मीर जैसा जिहाद हुआ। मुसलमानों के 50 से ज़्यादा देश हैं। जितने भी देश हैं वे सब पहले हिन्दू, पर्सियन, क्रिश्चियन, यहूदी एवं बुद्धिस्ट देश थे जो के जिहाद के शिकार हुए। पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश में हिन्दू और सिखों को अत्यंत प्रताड़ित किया जाता है। 14 साल का होते ही हिन्दू एवं सिख लड़कियों को उठा लिया जाता है। पुलिस में जाने पर जवाब मिलता है कि तुम्हारी लड़की ने कलमा पड़ लिया है और वह मुसलमान हो गई है, वह अपने शौहर(पति) के घर है। अब तुम्हारा उससे कोई वास्ता नहीं। उसे भूल जाओ। उनकी रिपोर्ट भी नहीं लिखी जाती। ननकाना साहिब पाकिस्तान में जब एक भारतीय न्यूज़ चैनल ने इसका सबूतों साथ प्रसारण किया तो उसके रिपोर्टर पर एयरपोर्ट पास ही आतंकी हमला हुआ जिसमें वह किसी तरह जीवित बच गया। देश तो दूर की बात है, जिस गांव, छोटी कॉलोनी, शहर अथवा राज्य में भी मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक होती है तो वहां भी गैर मुसलमानों के साथ जिहाद की वारदातें एवं यातनाएं बड़े स्तर पर होना सामान्य है। उदाहरस्वरूप केरल- मल्लापुरम, पश्चिम बंगाल- आसनसोल, रानीगंज, उत्तर प्रदेश- कैराना, मऊ आदि।
ऊपर बताए गए तथ्य भारतीय राज्य सभा सांसद डा. सुब्रमणियन स्वामी ने अमेरिका में अपनी स्पीच में उजागर किए हैं। डेविड वुड्स (अमेरिकन एक्टिविस्ट) ने उस स्पीच की व्याख्या कर उसे और विस्तार इसे समझाया है।
इस्लाम के अनुसार काफिर कौन है
जो सर्वशक्तिमान अल्लाह में विश्वास ना रखें। या
जो प्रॉफिट मुहम्मद को आखिरी पैगम्बर (मैसेंजर) ना माने अथवा उसमें श्रद्धा ना रखे। या
जो मूर्ति पूजा करते हों। या
इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले लोग। या
जिसकी इस्लाम में तो श्रद्धा हो लेकिन इस्लाम के साथ दूसरे धर्म में भी विश्वास हो अथवा उसके प्रति सम्मान हो।
ऊपर वर्णित पांचों में से कोई व्यक्ति किसी एक मापदंड को भी पूर्ण करले तो वह काफ़िर है।
गैर मुसलमानों के साथ अल - तक्किया की नीति
अल ताक्किया नीति अनुसार एक मुसलमान के लिए काफिरों के साथ झूठी कसम खाना, झूठ बोलना, धोखा देना, झूठे राजनीतिक रक्षा समझौते करना हलाल पुण्य है।
जिहाद ए अक़बर (मुसलमान का मुसलमानों के प्रति जिहाद) एवं जिहाद ए असगर (मुसलमानों का काफिरों के प्रति किया जाने वाला जिहाद) में अन्तर
जब भी कभी काफिरों पर जिहाद की असलियत खुलने लगती तो इस्लामिक तथाकथित विद्वान् एक स्वर में कहने लगते हैं कि यह जिहाद नहीं है, किसी प्यासे को पानी पिलाना जिहाद है, किसी की सहायता करना जिहाद है। दूसरा तर्क इस्लामिक तथाकथित विद्वान् देते हैं कि इस्लाम कहता है कि एक बेगुनाह को मारने का मतलब है पूरी इंसानियत को मारना।
यह तर्क सुनके लोग भ्रमित हो जाते हैं कि यह जिहाद है जो यह तथाकथित विद्वान कह रहा है या वो जिहाद है ऊपर बताया गया है।
इस्लाम में सबसे बड़ा गुनाह है कुफ्र या काफ़िर होना। काफिरों पर दया करना हराम (पाप) है। काफिरों लिए तभी कुछ किया जा सकता है अगर वह इस्लाम को सशक्त करने लिए हो अथवा नहीं। पानी पिलाना आदि अच्छे कार्य करना, यह केवल मुसलमानों का मुसलमानों प्रति जिहाद ए अक़बर का हिस्सा है। एक निर्दोष को मारना पूरी इंसानियत मारने के बराबर है यह भी जिहाद ए अक़बर का हिस्सा है क्योंकि गैर मुस्लिम काफ़िर होना इस्लाम के हिसाब से सबसे बड़ा अपराध है और उनको मारना हलाल (पुण्य) है।
समूचे विश्व में गैर मुस्लिम काफिरों पर जिहाद करने वाले कुछ जिहादी आतंकवादी संगठनों की सूची। इन संगठनों को अपना आदर्श मानने वालों की संख्या करोड़ों में है:
1. अल-शबाब (अफ्रीका),
2. अल मुरबितुन (अफ्रीका),
3. अल-कायदा (अफगानिस्तान),
4. अल-कायदा (इस्लामिक मगरेब),
5. अल-कायदा (भारतीय उपमहाद्वीप),
6. अल-कायदा (अरब प्रायद्वीप),
7. हमास (फिलिस्तीन),
8. फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (फिलिस्तीन),
9. (फलस्तीन) मुक्ति के लिए लोकप्रिय मोर्चा,
10. हिज़बुल्लाह (लेबनान),
11. अंसार अल-शरिया-बेनगाज़ी (लेबनान),
12. असबत अल-अंसार (लेबनान),
13. ISIS (इराक),
14. ISIS (सीरिया),
15. ISIS (कॉकस)
16. ISIS (लीबिया)
17. ISIS (यमन)
18. ISIS (अल्जीरिया),
19. आईएसआईएस (फिलीपींस)
20. जुंद अल-शाम (अफगानिस्तान),
21. अल-मौराबितौन (लेबनान),
22. अब्दुल्ला आज़म ब्रिगेड (लेबनान),
23. अल-इतिहाद अल-इस्लामिया (सोमालिया),
24. अल-हरमीन फाउंडेशन (सऊदी अरब),
25. अंसार-अल-शरिया (मोरक्को),
26. मोरक्कन मुद जादीन (मोरक्को),
27. सलाफिया जिहादिया (मोरक्को),
28. बोको हरम (अफ्रिका),
29. (उज्बेकिस्तान) का इस्लामी आंदोलन,
30. इस्लामिक जिहाद यूनियन (उज्बेकिस्तान),
31. इस्लामिक जिहाद यूनियन (जर्मनी),
32. DRW ट्रू-रिलिजन (जर्मनी)
33. फजर नुसंतरा आंदोलन (जर्मनी)
34. DIK हिल्डशाइम (जर्मनी)
35. जैश-ए-मोहम्मद (कश्मीर),
36. जैश अल-मुहाजरीन वाल-अंसार (सीरिया),
37. फिलिस्तीन (सीरिया) की मुक्ति के लिए लोकप्रिय मोर्चा,
38. जमात अल दावा अल कुरान (अफगानिस्तान),
39. जुंडल्लाह (ईरान)
40. Quds Force (ईरान)
41. कटैब हिज्बुल्लाह (इराक),
42. अल-इतिहाद अल-इस्लामिया (सोमालिया),
43. मिस्र के इस्लामी जिहाद (मिस्र),
44. जुंद अल-शाम (जॉर्डन)
45. फजर नुसंतरा आंदोलन (ऑस्ट्रेलिया)
46. इस्लामिक रिवाइवल का समाज
47. विरासत (टेरर फंडिंग, वर्ल्डवाइड कार्यालय)
48. तालिबान (अफगानिस्तान),
49. तालिबान (पाकिस्तान),
50. तहरीक-ए-तालिबान (पाकिस्तान),
51. इस्लाम की सेना (सीरिया),
52. इस्लामिक मूवमेंट (इज़राइल)
53. अंसार अल शरिया (ट्यूनीशिया),
54. (जेरुसलम) के दूतों में मुजाहिदीन शूरा परिषद,
55. लीबिया इस्लामिक फाइटिंग ग्रुप (लीबिया),
(पश्चिम अफ्रीका) में एकता और जिहाद के लिए आंदोलन,
56. फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (फिलिस्तीन)
57. तेविद-सेलम (अल-कुद्स आर्मी)
58. मोरक्को इस्लामिक कॉम्बैटेंट ग्रुप (मोरक्को),
59. काकेशस अमीरात (रूस),
60. दुख्तारन-ए-मिलत नारीवादी इस्लामवादी (भारत),
61. इंडियन मुजाहिदीन (भारत),
62. जमात-उल-मुजाहिदीन (भारत)
63. अंसार अल-इस्लाम (भारत)
64. छात्र इस्लामिक आंदोलन (भारत),
65. हरकत मुजाहिदीन (भारत),
66. हिजबुल मुजाहिदीन (भारत)
67. लश्कर ए इस्लाम (भारत)
68. जुंद अल-ख़िलाफा (अल्जीरिया),
69. तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी,
70. मिस्र के इस्लामिक जिहाद (मिस्र),
71. ग्रेट ईस्टर्न इस्लामिक रेडर्स फ्रंट (तुर्की),
72. हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (पाकिस्तान),
73. तहरीक-ए-नफ़ाज़-ए-शरीयत-ए-मोहम्मदी (पाकिस्तान),
74. लश्कर ए तैय्यबा (पाकिस्तान)
75. लश्कर ए झांगवी (पाकिस्तान) अहले सुन्नत वाल जमात (पाकिस्तान),
76. जमात उल-अहरार (पाकिस्तान),
77. हरकत-उल-मुजाहिदीन (पाकिस्तान),
78. जमात उल-फुरकान (पाकिस्तान),
79. हरकत-उल-मुजाहिदीन (सीरिया),
80. अंसार अल-दीन फ्रंट (सीरिया),
81. जबात फतेह अल-शाम (सीरिया),
82. जमाअह अनरहुत दौला (सीरिया),
83. नूर अल-दीन अल-ज़ेंकी आंदोलन (सीरिया),
84. लिवा अल-हक (सीरिया),
85. अल-तौहीद ब्रिगेड (सीरिया),
86. जुंद अल-अक्सा (सीरिया),
87. अल-तौहीद ब्रिगेड (सीरिया),
88. यरमौक शहीद ब्रिगेड (सीरिया),
89. खालिद इब्न अल-वलीद सेना (सीरिया),
90. हिज्ब-ए इस्लामी गुलबदीन (अफगानिस्तान),
91. जमात-उल-अहरार (अफगानिस्तान)
92. हिज्ब उत-तहरीर (विश्वव्यापी खलीफा),
93. हिजबुल मुजाहिदीन (कश्मीर),
94. अंसार अल्लाह (यमन),
95. राहत और विकास के लिए पवित्र भूमि फाउंडेशन (यूएसए),
96. जमात मुजाहिदीन (भारत),
97. जमाअह अनरहुत तौहीद (इंडोनेशिया),
98. हिज़बट तहरीर (इंडोनेशिया),
99. फजर नुसंतरा आंदोलन (इंडोनेशिया),
100. जेमाह इस्लामिया (इंडोनेशिया),
101. जेमाह इस्लामिया (फिलीपींस),
102. जेमाह इस्लामिया (सिंगापुर),
103. जेमाह इस्लामिया (थाईलैंड),
104. जेमाह इस्लामिया (मलेशिया),
105. अंसार डाइन (अफ्रीका),
106. अस्बत अल-अंसार (फिलिस्तीन),
107. हिज्ब उत-तहरीर (समूह को जोड़ने वाला)
108. इस्लामी खलीफा दुनिया भर में एक दुनिया इस्लामी खलीफा)
109. नक्शबंदी आदेश (इराक) के पुरुषों की सेना
110. अल नुसरा फ्रंट (सीरिया),
111. अल-बद्र (पाकिस्तान),
112. इस्लाम 4 यूके (यूके),
113. अल घुरबा (यूके),
114. कॉल टू सबमिशन (यूके),
115. इस्लामी पथ (यूके),
116. लंदन स्कूल ऑफ शरिया (यूके),
117. क्रुसेड्स (यूके) के खिलाफ मुस्लिम,
118. Need4Khilafah (यूके),
119. शरिया प्रोजेक्ट (यूके),
120. द इस्लामिक दाव एसोसिएशन (यूके),
121. उद्धारकर्ता संप्रदाय (यूके),
123. जमात उल-फुरकान (यूके),
124. मिनाबर अंसार दीन (यूके),
125. अल-मुहाजिरौन (यूके) (ली रिग्बी, लंदन 2017 के सदस्य),
126. इस्लामिक काउंसिल ऑफ़ ब्रिटेन (यूके) (ब्रिटेन की आधिकारिक मुस्लिम काउंसिल के साथ भ्रमित नहीं होना),
127. अहलुस सुन्नत वाल जामा (यूके),
128. एल-गामा (मिस्र),
129. अल-इस्लामिया (मिस्र),
130. (अल्जीरिया) के सशस्त्र इस्लामी लोग,
131. कॉल एंड कॉम्बैट (अल्जीरिया) के लिए सलाफिस्ट ग्रुप,
132. अंसारु (अल्जीरिया),
133. अंसार-अल-शरिया (लीबिया),
134. अल इत्तिहाद अल इस्लामिया (सोमालिया),
135. अंसार अल-शरिया (ट्यूनीशिया),
136. अल-शबाब (अफ्रीका),
137. अल-अक्सा फाउंडेशन (जर्मनी)
138. अल-अक्सा शहीद ब्रिगेड (फिलिस्तीन),
139. अबू सय्यफ़ (फिलीपींस),
140. अदन-अबान इस्लामिक सेना (यमन),
141. अजनाद मिसर (मिस्र),
142. अबू निदाल संगठन (फिलिस्तीन),
143. जमाअ अंसारुत तौहीद (इंडोनेशिया)
No comments:
Post a Comment